भारत भूमि की अमूल्य विरासत “अटल बिहारी वाजपेयी जी” के जीवन मूल्य और आदर्श आज हर युवा के लिए प्ररेणा का केन्द्र है
पारस प्रताप सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता व स्वतंत्र लेखक
मध्यप्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को जन्में पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी सही मायने में भारत रत्न थे; वह भारत भूमि की अमूल्य विरासत है। जो भारत माँ के सच्चे सपूत,, सच्चे देशभक्त, एक महान नेता, कवि और लेखक थे। उनके लिए हमेशा राष्ट्रहित ही सदा सर्वोपरि रहा। आज पूरा देश उनकी कमी महसूस कर रहा है।
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के जीवन मूल्य और आदर्श आज हर युवा के लिए प्ररेणा का केन्द्र है, चाहे वह किसी भी विषय का विद्यार्थी हो या किसी भी क्षेत्र का विशेषज्ञ व किसी भी राजनैतिक पार्टी का हो। उनकी भूमिका आपको किसी न किसी रूप में हर क्षेत्र में मिलेगी। उनका जीवन ही एक कला है, जो दलगत राजनीति से भिन्न दिखता है। उनके आचरण और वचन में जो एकरूपता थी, वो आज कहीं नजर नहीं आती।
उनका सार्वजनिक जीवन बहुत ही बेदाग और साफ सुथरा रहा। इसी बेदाग छवि और साफ सुथरे सार्वजनिक जीवन की वजह से हर कोई सम्मान करता है। बच्चे, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों सभी के बीच में लोकप्रिय, देश का हर युवा, बच्चो के आदर्श है। अथक साधना से निर्मित अटल जी का जो व्यक्तित्व और कृतित्व हमारे सामने है, उन्हें शब्दों में समेटपाना कठिन दिखता है।
अपनी कविताओं के जरिए अटल जी हमेशा सामाजिक बुराइयों, राजनैतिक दोषों पर प्रहार करते रहे। उनकी कविताएं ‘‘आओ फिर से दीया जलाएं, ‘‘मेरे प्रभु’’, ‘‘गीत नया गाता हूं’’ हमेशा सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती रहेंगी। यह कविताएं सूख रहे पौधें में पानी से सिंचित करने का काम करती है।
अटल बिहारी वाजपेयी जी उन असाधारण व्यक्तियों में से एक नजर आते, जो मौन में भी वाक्पटुता से पेश आते थे। उनका जीवन हमेशा तुरंत सफलता से भरा नहीं रहा वास्तव में, उन्हें शुरुआती वर्षों में भारी हार का सामना करना पड़ा, उन्होंने दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में सबसे बड़ी ताकत अपने गुरु को भी खो दिया, अपने परिवार को त्याग दिया, यह आसान तो कतई नहीं रहा होगा। अनेक अड़चने आयीं लेकिन इनमें से कोई भी उन्हें अपने मार्ग से नहीं रोक सका। वे भारी विरोध के बावजूद अपना समर्पण और धैर्य, रखा। पूरे जीवनभर अविवाहित रहकर, संयमी ताकत और ईमानदारी के स्तंभ के रूप में खड़े रहे। इससे ज्ञात होता है कि, वो अपने स्वयं और संकल्प के प्रति भी कितने वफादार थे।
हमे उनके जीवन से शांत स्वभाव और अपार धैर्य, कब सुनना है और कब चुप रहना है, अपमान का जवाब देने के बजाय, उन्होंने शांति से तथ्यों के साथ आरोपों को खारिज करना सीखना चाहिए। आज की दुनिया में, इस प्रकार के नेतृत्व कौशल किशोर दिमाग के लिए एक आवश्यक संपत्ति है। उनका जीवन हमेशा गुलाबी चश्मे से नहीं देखा जाता है और कभी-कभी परिस्थितियाँ महत्वपूर्ण निर्णय लेने में साहसिक कदम उठाने की मांग कर सकती हैं इसलिए यह जरूरी है कि, युवा ऐसे मामलों के लिए जागरूक और तैयार रहें।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान अत्यधिक साहस और हिम्मत दिखाते हुए इस तथ्य को सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया है, जहाँ उन्होंने एक इंच भी जमीन देने से इनकार कर दिया था और पोखरण में दूसरे परमाणु परीक्षण के दौरान भी, जो काफी अंतरराष्ट्रीय दबाव और अत्यधिक गोपनीयता के बीच किया गया था।
जहां आज राजनेता देश भक्ति नहीं बल्कि पार्टियां और बड़े नेताओं की भक्ति में लगे नजर आते है। एक-दूसरों को नीचा दिखाने में लगे हुए। देश सर्वाच्च राजसभा और लोकसभा में भाषाओं की मर्यादाओं का चीरहरण दिखायी देता है। ऐसे माहौल का देखकर आज देश ऐसे महान नेतृत्व की कमी महसूस कर रहा है। यदि आज नेताओं को उन्हे सच्चा सम्मान देना है तो, उनके जीवन से प्ररेणा लेना चाहिए कि, आपको जनता द्वारा राज्य करने नहीं; जनता की सेवा करने के लिए चुना गया है।
युवा पीढ़ी को इस महान व्यक्तित्व से जीवन के कई सबक सीखने और आत्मसात करने चाहिए। अपनी सफलता के बावजूद, विनम्रता, दृढ़ता, खुले विचार और सरल जीवनशैली हमेशा उनके व्यक्तित्व की शोभा बढ़ाती रही, जो युवाओं के लिए जीवन जीने के तरीके के बारे में एक सच्ची प्रेरणा होनी चाहिए।
हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं …!
मैंने 2012 के बाद जितना पढ़ा, सुना और गढ़ा है, उसी के आधार पर यह व्याख्या करने का प्रयास किया है; लेकिन यह बहुत कम है।
पारस प्रताप सिंह
सामाजिक कार्यकर्ता व स्वतंत्र लेखक
सलाहकार- जल जन जोड़ो अभियान
राष्ट्रीय संयोजक – राष्ट्रीय युवा जल बिरादरी
मो. 9009739338
ईमैल- paras9338@gmail.com