वक़्फ़ प्रशासन में महिलाओं की हिस्सेदारी से उनका सशक्तीकरण संभव !
- प्रो. जसीम मोहम्मद

वक़्फ़ ने कई पीढ़ियों से समाज-कल्याण के विविध पक्षों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वक़्फ़ इस्लाम में एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें लोग धर्मार्थ एवं धार्मिक उद्देश्यों के लिए अपनी संपत्ति या पैसा दान करते हैं। इन दानों से मिलनेवाले लाभ का उपयोग दूसरों की मदद करने के लिए किया जाता है, जैसे स्कूल, अस्पताल, मस्जिद आदि का निर्माण और ज़रूरतमंदों को हर तरह का आश्रय प्रदान करना। यहव्यवस्था हमेशा से गरीब और वंचित समुदायों के लिए सहायता का एक मज़बूत स्तंभ और माध्यम रही है।
हालाँकि, भले ही वक़्फ़ ने कई लोगों को मदद पहुँचाई हो, पर मुस्लिम महिलाओं को अक्सर पीछे छोड़ दिया गया है या उन्हें नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है। उन्हें वक़्फ़ से कभी भी समान अवसर या उचित लाभ नहीं मिले। इसका एक बड़ा कारण वक़्फ़ प्रबंधन में उनकी सीमित भागीदारी और संसाधनों तक सीमित पहुँच को मान सकते हैं। यह असमानता लंबे समय से मौजूद है और इसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है। बदलाव लाने के लिए सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पेश किया। इस कानून का उद्देश्य वक़्फ़ को और अधिक समावेशी बनाना है, खासकर मुस्लिम महिलाओं के लिए। इस नज़रिए से यह कई नए नियम पेश करता है, जो महिलाओं को संपत्ति में उनका उचित हिस्सा, वित्तीय सहायता और वक्फ मामलों में निर्णय लेने की शक्तियाँ प्रदान करते हैं। यह इस्लामी दान में लैंगिक समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। नए कानून में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तनों में से एक विशेष प्रकार के वक़्फ़ में महिलाओं के उत्तराधिकार, अधिकारों की सुरक्षा है, जिसे वक़्फ़ -अलल-औलाद कहा जाता है। इसप्रकार का वक़्फ़ आमतौर पर परिवारों द्वारा अपने बच्चों और वंशजों के लाभ के लिए बनाया जाता है, लेकिन कभी-कभी परिवार के लोग इसका इस्तेमाल बेटियों को उनकी संपत्ति में हिस्सा देने से रोकने के लिए करते हैं और सब कुछ वक़्फ़ को समर्पित कर देते हैं। इस अनुचित प्रथा को रोकने के लिए अधिनियम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कोई भी संपत्ति वक़्फ़ को तब तक नहीं दी जा सकती, जबतक कि सभी महिला उत्तराधिकारियों को विरासत का उनका कानूनी हिस्सा नहीं मिल जाता। धारा3ए(2) के तहत कवर किया गया यह नियम सुनिश्चित करता है कि बेटियों, विधवाओं और माताओं को वक़्फ़ का हिस्सा बनने से पहले उनके अधिकार से वंचित न किया जाए। यह कदम न्याय लाता है और इस्लाम की शिक्षाओं का पालन करता है, जो स्पष्ट रूप से महिलाओं को विरासत में निश्चित हिस्सेदारी प्रदान करता है। यह परिवारों को महिलाओं को संपत्ति देने से बचने के लिए वक्फ प्रणाली का दुरुपयोग करने से भी रोकता है। अब, संपत्ति को वक़्फ़ में बदलने से पहले हर महिला को उसका उचित हिस्सा मिलेगा।
नया कानून वक़्फ़ -अल-औलाद के उद्देश्य का भी विस्तार करता है। पहले, इस प्रकार के वक़्फ़ का इस्तेमाल ज्यादातर पुरुष वंशजों को सहारा देने के लिए किया जाता था, लेकिन अब, इसका इस्तेमाल धारा 3(आर)(iv) के तहत विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और अनाथों को वित्तीय मदद देने के लिए किया जा सकता है। यह एक बहुत ही सकारात्मक बदलाव है, क्योंकि यह मुश्किल जीवन स्थितियों में महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा देता है। विधवाओं को अक्सर अपने पतिको खोने के बाद कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनके पास आय या सहायता का कोई स्रोत नहीं हो सकता है। इसी तरह, तलाकशुदा महिलाएँ और अनाथ आर्थिक रूप से कमजोर हो सकते हैं। यह कानून सुनिश्चित करता है कि उन्हें भुलाया न जाए और वे अपनी बुनियादी जरूरतों, शिक्षा, स्वास्थ्य और आश्रय के लिए वक़्फ़ फंड से सहायता प्राप्त कर सकें। यह कदम न्याय, करुणा और कमजोर या ज़रूरतमंदों लोगों की देखभाल के इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप है। वक़्फ़ के पैसे का इस्तेमाल उनके हित में करने से समाज अधिक समान रूप से देखभाल करनेवाला बनता है और तब वक़्फ़ व्यवस्था सामाजिक भलाई के लिए एक सच्चा साधन बन जाती है। अधिनियम में एक और बड़ा सुधार वक़्फ़ शासन में महिलाओं को शामिल करना है। पहली बार, अब प्रत्येक राज्य वक़्फ़ बोर्ड और केंद्रीय वक़्फ़ परिषद् के सदस्य के रूप में कम से कम दो मुस्लिम महिलाओं का होना अनिवार्य है, जैसा कि क्रमशः धारा 14 और धारा 9 में उल्लेख किया गया है। पहले, वक़्फ़ के बारे में अधिकांश निर्णय केवल पुरुषों द्वारा लिए जाते थे। नतीजतन, महिलाओं की चिंताओं और विचारों को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता था, लेकिन अब, नेतृत्व की भूमिकाओं में अधिक महिलाओं के साथ, महिलाओं की ज़रूरतों और कल्याण का बेहतर प्रतिनिधित्व होगा। महिलाएँ यह तय करने में मदद करेंगी कि वक़्फ़ का पैसा कैसे खर्च किया जाना चाहिए और किन परियोजनाओं का समर्थन किया जाना चाहिए। निर्णय लेने में महिलाओं का यह समावेश केवल प्रतीकात्मक नहीं है – यह वास्तविक परिवर्तन लानें में समर्थ है। महिला नेतृत्वकर्ता यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि वक़्फ़ फंड का उपयोग लड़कियों की शिक्षा, मातृत्व देखभाल, कानूनी सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण और महिलाओं के लिए माइक्रोफाइनेंस जैसे सार्थक कारणों के लिए किया जाए। सत्ता में महिलाओं का होना अन्य महिलाओं को भी आगे आने और सामाजिक और धार्मिक मामलों में भाग लेने के लिए प्रेरित करेगा।इससे उनमें आत्मविश्वास पैदा होगा और समुदाय के संसाधनों पर स्वामित्व की भावना भी जाग्रत होगी। यह लैंगिक रूप से संवेदनशील शासन के निर्माण में एक बहुत बड़ा कदम है। यह अधिनियम मुस्लिम लड़कियों की छात्रवृत्ति और शिक्षा के लिए वक़्फ़ फंड के उपयोग को प्रोत्साहित करता है। शिक्षा सशक्तीकरण का सबसे मजबूत साधन है। जब लड़कियों को शिक्षित किया जाता है, तो वे स्वतंत्र, आत्मविश्वासी और अपने और अपने परिवार के लिए निर्णय लेने में सक्षम हो जाती हैं। वक़्फ़ उनके सपनों को पूरा करने में एक शक्तिशाली भूमिका निभा सकता है।
शिक्षा के अलावा, यह कानून महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवा का समर्थन करता है, जिसमें उनके लिए अपेक्षित मातृत्व सहायता भी शामिल है। कई मुस्लिम महिलाओं, ख़ासतौर पर ग़रीब इलाक़ों में, गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा देखभाल तक पहुँच नहीं पाती हैं। वक़्फ़ के पैसे के उचित इस्तेमाल से, वे अब गर्भावस्था और प्रसव के दौरान आवश्यक उपचार, दवाइयाँ और सहायता प्राप्त कर सकती हैं। नए नियम महिलाओं केलिए कौशल प्रशिक्षण और उद्यमिता को भी बढ़ावा देते हैं। इसका मतलब है कि वक़्फ़ के पैसे का इस्तेमाल व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने के लिए किया जा सकता है, जहाँ महिलाएँ सिलाई, सौंदर्य सेवाएँ, कंप्यूटर का काम, स्वास्थ्य सेवा या व्यवसाय प्रबंधन जैसे उपयोगी कौशल सीख सकती हैं। ये कौशल महिलाओं को नौकरी पाने या अपना खुद का छोटा व्यवसाय शुरू करने में मदद कर सकते हैं। वक़्फ़ माइक्रोफाइनेंस और स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का भी समर्थन करेगा, ताकि महिलाएँ छोटे ऋण ले सकें, दुकानें या सेवाएँ चला सकें और आजीविका कमा सकें। इसके माध्यम से वे आर्थिक रूप से मजबूत बनती हैं और दूसरों पर उनकी निर्भरता कम होती है। उक्त कानून वक़्फ़ फंड का इस्तेमाल कानूनी सहायता के लिए भी करने की अनुमति देता है, खासकर विरासत के अधिकार और घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों में। कई महिलाएँ अपने कानूनी अधिकारों को नहीं जानती हैं या कानूनी मदद नहीं ले सकती हैं। वक़्फ़ अब ऐसी सहायता प्रदान करेगा, जिससे उन्हें न्याय और सुरक्षा मिलेगी। अधिनियम में सबसे महत्वपूर्ण सुधारों में से एक वक़्फ़ रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण है।इसका मतलब है कि सभी वक़्फ़ संपत्तियों और लेन-देन के रिकार्ड को कंप्यूटर सिस्टम में संरक्षित और मेंटेन किया जाएगा। यह डिजिटल डेटाबेस वक़्फ़ की पारदर्शिता में सुधार करेगा और भ्रष्टाचार को कम करेगा। विचारणीय है कि अक्सर, वक़्फ़ फंड का दुरुपयोग किया जाता था या संपत्तियों पर अवैध रूप से क़ब्ज़े कर लिए जाते थे। डिजिटल रिकॉर्ड के साथ, पैसे और ज़मीन का हिसाब रखना आसान हो जाएगा। इसके साथ ही यह सुनिश्चित करना भी आसान हो जाएगा कि इसका इस्तेमाल सही लोगों और सही उद्देश्यों के लिए किया जाए। यह महिलाओं के लिए विशेष रूप से मददगार है, क्योंकि अब उनके पास सबूत और उनके लाभ के लिए क्या है, इसकी पहुँच होगी। डिजिटल रिकॉर्ड स्पष्टता भी लाते हैं और भ्रम को कम करते हैं। महिलाएँ अब ऑनलाइन जाँच कर सकेंगी कि शिक्षा, स्वास्थ्य या सहायता के लिए कोई वक़्फ़ योजना मौजूद है या नहीं – और इसके लिए आवेदन कैसे करें। यह पूरी प्रणाली को अधिक खुला, कुशल और निष्पक्ष बनाता है। उक्त अधिनियम अतीत में हुए अन्याय को ठीक करने पर भी जोर देता है जहाँ महिलाओं को वक़्फ़ लाभों से वंचित रखा गया था। इन ग़लतियों को पहचानकर और महिलाओं को समान निर्णय लेने की शक्ति और आर्थिक सहायता देकर, यह अधिक संतुलित समाज की नींव रखता है। यह दृष्टिकोण न केवल भारतीय संविधान के मूल्यों का पालन करता है, जो सभी के लिए समानता और न्याय की गारंटी देता है, बल्कि इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं का भी पालन करता है, जो महिलाओं के अधिकारों का सम्मान और सुरक्षा करता है। अधिनियम दोनों की भावना को दर्शाता है। वक़्फ़ के माध्यम से महिलाओं का सशक्तीकरण केवल सहायता देने के विषय में नहीं है, बल्कि यह सम्मान, गरिमा और नेतृत्व देने के संबंध में भी है। महिलाओं को वक़्फ़ प्रणाली में सक्रिय रूप से भागीदार बनाकर, कानून उन्हें हाशिये से सामुदायिक जीवन की मुख्यधारा में जाने में मदद कर रहा है।
दीर्घ अवधि में, ये सुधार एक अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी वक़्फ़ प्रणाली का निर्माण कर सकेंगे, जहाँ सभी – पुरुष और महिलाएँ – समाज की सेवा के लिए मिलकर काम करेंगे। यह धार्मिक और धर्मार्थ संसाधनों के प्रबंधन में अधिक जिम्मेदार और निष्पक्ष नेतृत्व भी तैयार करेगा। इन कदमों के माध्यम से, वक़्फ़ न केवल एक धार्मिक दायित्व बन जाएगा, बल्कि सामाजिक कल्याण, सशक्तीकरण और विकास के लिए एक आधुनिक और प्रभावी उपकरण प्रमाणित होगा। यह सबसे कमजोर वर्गों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के उत्थान के लिए सामुदायिक संसाधनों का उपयोग करने का एक नया मॉडल तैयार करेगा।
जैसे-जैसे नए नियम लागू होते हैं, समुदाय के लिए वक़्फ़ के तहत महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना भी महत्वपूर्ण है। गैर सरकारी संगठनों, स्कूलों और धार्मिक नेताओं को यह संदेश फैलाने में मदद करनी चाहिए कि महिलाएँ भी वक़्फ़ में एक उचित हिस्सा और आवाज़ हैं। वक़्फ़ बोर्ड और एसएचजी की महिला सदस्यों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाने चाहिए, ताकि उनका नेतृत्व, कानूनों का ज्ञान और वित्तीय कौशल मजबूत हो सके। सशक्त महिलाएँ अपने परिवारों और समुदायों के लिए बदलाव लानेवाली बन सकती हैं। वक़्फ़(संशोधन) अधिनियम, 2025 दर्शाता है कि सरकार महिलाओं के विकास और धार्मिक निष्पक्षता के बारे में गंभीर है। यह एक मॉडल है कि कैसे कानूनी सुधार सामाजिक न्याय ला सकते हैं। जब कानून, आस्था और लैंगिक अधिकार एक साथ आते हैं, तो सच्चा सशक्तीकरण शुरू होता है। उत्तराधिकार के अधिकार सुरक्षित करके, विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं का समर्थन करके, आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देकर और निर्णय लेने में महिलाओं को शामिल करके, यह अधिनियम वक़्फ़ शासन में एक पूर्ण परिवर्तन लाता है। यह भारत में लैंगिक न्याय की दिशा में एक साहसिक और ऐतिहासिक कदम है। आनेवाले वर्षों में, हम उम्मीद करते हैं कि अधिक से अधिक महिलाएँ वक़्फ़ के भविष्य को आकार देंगी, इसके संसाधनों को वहाँ ले जाएँगी जहाँ उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है। इसके माध्यम से वे समुदाय में समानता और प्रगति के लिए एक मजबूत ताक़त बनाने में समर्थ होंगी।

(लेखक नरेंद्र मोदी अध्ययन केंद्र (CNMS) के संस्थापक अध्यक्ष तथा तुलनात्मक साहित्य के प्रोफ़ेसर हैं। संपर्क-ईमेल: modistudies@gmail.com वेबसाइट- www.namostudies.com)
